मरकुस 7:14-23 में, येसु पाप और शुद्धता के सार पर एक गहन सत्य प्रकट करते हैं। फरीसी, जो बाहरी रीति-रिवाजों और परंपराओं में उलझे हुए थे, आध्यात्मिक वास्तविकताओं को भूल चुके थे। येसु ध्यान को अंदर की ओर मोड़ते हुए घोषणा करते हैं: "कोई भी बाहरी चीज़ मनुष्य को अशुद्ध नहीं कर सकती... अशुद्ध तो वह है जो मनुष्य के भीतर से निकलती है" (मरकुस 7:15)। यह शिक्षा हमारे हृदय की गहराई में छिपे पाप के मूल को उजागर करती है।
1. पाप का स्रोत: हृदय
येसु उन बुराइयों की सूची देते हैं जो हृदय से उत्पन्न होती हैं—"बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, लालच, द्वेष, छल, अश्लीलता, ईर्ष्या, निंदा, अहंकार, और मूर्खता" (मरकुस 7:21-22)। ये बाहरी गंदगी नहीं, बल्कि अंदर के विकृत इरादे हैं जो मनुष्य को भ्रष्ट करते हैं। यह शिक्षा हमें याद दिलाती है कि पाप केवल नियम तोड़ने का नहीं, बल्कि हृदय की दशा का प्रश्न है। हमें अपने भीतर के अंधकार का सामना करना होगा और परमेश्वर की कृपा से परिवर्तन माँगना होगा।
2. बाहरी आडंबर बनाम आंतरिक शुद्धि
फरीसियों का हाथ धोने, बर्तन साफ़ करने जैसे बाहरी कर्मकांडों पर ज़ोर गलत नहीं था, पर यह तब समस्या बन गया जब यह आंतरिक पवित्रता का स्थान लेने लगा। येसु सिखाते हैं कि बाहरी आचरण हृदय को शुद्ध नहीं कर सकते। सच्ची शुद्धता तभी आती है जब हृदय परमेश्वर की ओर मुड़ता है, नम्र होकर उसके प्रेम को ग्रहण करता है।
3. सच्ची पवित्रता की ओर बुलाहट
येसु हमें नकली धार्मिकता से ऊपर उठकर एक ऐसे हृदय को विकसित करने को कहते हैं जो परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता को प्रतिबिंबित करे। इसके लिए आत्म-मंथन, पश्चाताप और परमेश्वर के आत्मा के साथ सहयोग आवश्यक है। केवल "पवित्र दिखना" पर्याप्त नहीं—हमें "पवित्र होना" चाहिए।
4. कानूनवाद से मुक्ति
येसु की यह शिक्षा हमें कानूनवाद के बोझ से मुक्त करती है। वे बाहरी नियमों के पालन से आगे बढ़कर हृदय के परिवर्तन पर ज़ोर देते हैं। यह सुसमाचार का सार है: डर या दबाव से नहीं, बल्कि प्रेम और ईमानदारी से परमेश्वर के साथ संबंध बनाने की स्वतंत्रता।
प्रार्थना
हे प्रभु येसु,
आप हमारे हृदय की गहराइयों को जानते हैं।
हम अपने अंदर की अशुद्धता—घमंड, लालच, ईर्ष्या, कटुता—स्वीकार करते हैं।
हमें बाहरी दिखावे की धार्मिकता से मुक्त करें।
हमारे हृदय को शुद्ध करें, ताकि हमारे विचार, वचन और कर्म आपकी महिमा करें।
सच्ची पवित्रता की ओर हमें मोड़ें, और अपने आत्मा से हमें नवीनीकृत करें।
हमें सिखाएँ कि आपकी कृपा की स्वतंत्रता में जिएँ,
और आपकी सच्चाई के प्रकाश में चलें।
आमेन।

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