लूकस 5:1-11 पर चिंतन: समर्पण की पवित्र रसायन
मछुआरों की एक निराश सुबह में—खाली जाल, टूटी आशाएँ—येसु संत पेत्रुस की नाव में बिन बुलाए, किंतु एक उद्देश्यपूर्ण इरादे के साथ चढ़ जाते हैं। यह केवल एक चमत्कार की कहानी नहीं है; यह मानवीय तर्क को उलट देने वाला, एक धर्मिक बुलाहट का रूपांतरण है। यहाँ, साधारण जीवन पवित्रता का कैनवस बन जाता है।
1. गहरे पानी में प्रवेश का निमंत्रण
येसु उपदेश नहीं, बल्कि एक विनम्र निवेदन से शुरुआत करते हैं: “गहरे पानी में जाकर जाल डालो” (लूकस 5:4)। ‘गहराई’ अज्ञात का प्रतीक है, जहाँ मनुष्य का नियंत्रण डूब जाता है और ईश्वरीय विश्वास सतह पर आता है। अनुभवी मछुआरों के लिए दिन में मछली पकड़ना मूर्खता थी—फिर भी येसु की बुलाहट अक्सर हमारे ज्ञान के विपरीत होती है। चमत्कार मछलियों के ढेर से नहीं, बल्कि तर्क से परे जाने के साहस से शुरू होता है। वास्तविक प्रचुरता वहीं मिलती है जहाँ हम कभी अपेक्षा नहीं करते: उन गहराइयों में जिनसे हम डरते हैं।
2. चमत्कार: एक आध्यात्मिक दर्पण
जाल फटने लगते हैं, नावें डूबने लगती हैं, और पेत्रुस का प्रतिउत्तर हृदय को छू लेता है: “हे प्रभु, मुझसे दूर रहिए; मैं तो पापी मनुष्य हूँ!” (5:8)। चमत्कार उसे चकित नहीं करता, बल्कि उसकी नग्न आत्मा को उजागर कर देता है। ईश्वर के साथ साक्षात्कार हमारे ‘योग्यता’ के भ्रम को तोड़ देता है। किंतु येसु पेत्रुस की दुर्बलता को सेवा की पूर्वशर्त बना देते हैं। जो ईश्वर हमारी कमजोरी दिखाता है, वह हमें त्यागता नहीं, बल्कि अभिषिक्त करता है। हमारी दुर्बलता ही हमारी बुलाहट का आधार बनती है—हमारी शक्ति नहीं।
3. प्रचुरता और त्याग का विरोधाभास
मछलियों का अथाह ढेर मिलता है—फिर भी वे सब कुछ छोड़ देते हैं। यह ईश्वर के राज्य का विरोधाभास है: सबसे बड़ी “सफलता” को छोड़कर ही हम एक गहन उद्देश्य को पकड़ पाते हैं। मछलियाँ कभी लक्ष्य नहीं थीं; वे तो एक संकेत थीं। येसु उनके कौशल—धैर्य, मेहनत, धाराओं का ज्ञान—को पवित्र कर देते हैं: “अब तुम मनुष्यों के मछुआरे बनोगे” (5:10)। हमारे अतीत की विफलताएँ और योग्यताएँ व्यर्थ नहीं जातीं, बल्कि पवित्र सेवा के लिए पुनर्निर्मित होती हैं।
4. समुदाय की भूमिका
जाल फटते हैं, तो साथियों को सहायता के लिए बुलाया जाता है (5:7)। प्रचुरता साझेदारी माँगती है। इसी तरह, शिष्यत्व एकाकी नहीं है—याकूब और योहन भी पेत्रुस के साथ चल पड़ते हैं। बुलाहट व्यक्तिगत होती है, किंतु कभी निजी नहीं। हमें दूसरों की आवश्यकता होती है, ताकि ईश्वर की दी हुई प्रचुरता हमें न तोड़े।
उनके खाली जाल असफलता नहीं, बल्कि ईश्वरीय योजना की तैयारी थे। ईश्वर की प्रदानशीलता अक्सर हमारी थकान के बाद आती है, जब हम कबूल करते हैं: “हमने रातभर मेहनत की और कुछ नहीं पकड़ा” (5:5)। हमारा खालीपन उस यज्ञवेदी के समान है जहाँ ईश्वर की शक्ति प्रकट होती है। चमत्कार हमारी विफलता के बावजूद नहीं, बल्कि उसके माध्यम से होता है।
समापन: विश्वास का गणित
येसु “योग्य” लोगों को नहीं बुलाते; वे बुलाए गए लोगों को योग्य बनाते हैं। पेत्रुस की यात्रा—निराशा से विस्मय तक, अयोग्यता से आज्ञाकारिता तक—हम सभी का प्रतिबिंब है। ईसा का अनुसरण करने का अर्थ है: मानवीय तर्क को पवित्र जोखिम में बदलना, न केवल अपनी कमियों को बल्कि अपनी प्राप्तियों को भी छोड़ना, और उन गहराइयों में एक ऐसी बुलाहट पाना जो हमारे डर को अनुग्रह में डुबो दे। नाव, जाल, मछलियाँ—सब कुछ वही रहता है, किंतु वे पहले जैसे नहीं रहते। और न ही हम।

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